प्रेम
बादलों के बीच से झांकती,धूप की बिखरी किरणों सा,बारिश की बूंदों संग बरसते,इंद्रधनुष के रंगों सा,शाम की तन्हाई में झूमते,रूह को छू जाने वाले गीतों सा,दिल को जो भा जाए,उस संगीत के सुर सा,ज़िन्दगी की…
बादलों के बीच से झांकती,धूप की बिखरी किरणों सा,बारिश की बूंदों संग बरसते,इंद्रधनुष के रंगों सा,शाम की तन्हाई में झूमते,रूह को छू जाने वाले गीतों सा,दिल को जो भा जाए,उस संगीत के सुर सा,ज़िन्दगी की…
कभी-कभी, बिखरकर देखो बेज़ार से होकर,तुम जानोगे कितना साहस है तुममें,अपने ही टुकड़े समेट लेने का…लिखकर देखो, अपने सपनों को,समंदर के किनारे…रेत पर बड़े चाव से,और फिर देखो उन लहरों को,एक पल में सब मिटाते…
लंबी या छोटी, जैसी भी है ज़िंदगी, इसकी ख़ासियत को महसूस करने के लिए, कभी कभी, अच्छा होता है बस खामोश हो जाना… थोड़ा मुस्कुराना, और थोड़ा सुकून के कुछ पल बिताना, कभी कभी, अकेले…
वो कहते हैं की स्त्रियां कभी ज्ञानी न हो पाई, आध्यात्म की पराकाष्ठा को, जन्म मरण की बाधा को न समझ पाई। पर वो ये देखना भूल गए के स्त्रियों के दामन में गृहस्थी का…
कुछ तो है,एक एहसास सा,जो अधूरा सा है तुम्हारे बिना,ज़ज़्बात में, सिमटा हुआ,कोई अंजान सा कारवाँ,जिसमे गुम है,मेरा सारा जहाँ… पल भर में कभी भीड़ में भी,रूह के करीब से आ जाते हो तुम,और फिर…
कुछ अनकहे से लफ़्ज़ों को,आँखो से पिरोकार ज़ज़्बातों में,खामोशियों की दास्तान लिखते हुए,अरमानो से सजी हर शाम में,शायद एक दिन हर ख्वाब मुकम्मल हो जाए,जब भी तुम्हे आपने करीब पाऊँ,हां, बेपनाह मोहब्बत हो जाए…! बादलों…
बेसबर तन्हा राहों पर,तुम मिलो कभी इत्तेफ़ाक़ से,गुमनाम सी पहचान लेकर,आँखो में सवाल लिए,कुछ अंजान सी कहानियों का किस्सा पिरोकर,और अपना होने के एहसास लेकर,बेसबर तन्हा राहों पर,तुम मिलो कभी इत्तेफ़ाक़ से, ज़िंदगी के किसी…
कभी कभी मैं हाथों की लकीरों में, तुम्हारा नाम ढूँढने की कोशिश करती हूँ, कभी कभी मैं अपनी तन्हाई में, तुमसे मिलने की साज़िश करती हूँ, कहानियाँ तो बहुत लिखी हैं मैने अब तक, बस…
बात छोटी ही थी पर नुक्कड़ की मंडली में खास हो गई, माँ बेटी की बीच हुई तो बस बात हो गई, और सास बहू के बीच हुई तो बड़ी बात हो गई, दो बहनो…
ज़िंदगी की कश्मकश में थोड़ा और उलझना चाहती हूँ, भीड़ का हिस्सा बनने से पहले, मैं बाग़ी होना चाहती हूँ, सब पा लिया हो जिस ज़िंदगी में उसका फलसफा ही क्या होगा, मैं सब कुछ…