बाबुल
बाबुल तुम्हारे पहलू में बैठकर एक ज़िंदगी और जी लेने को मन करता है.. तुम्हारे घर की दहलीज़ को छोड़ने से पहले, इस आँगन में फिर से खेलने को मन करता है.. माँ की लोरियाँ…
बाबुल तुम्हारे पहलू में बैठकर एक ज़िंदगी और जी लेने को मन करता है.. तुम्हारे घर की दहलीज़ को छोड़ने से पहले, इस आँगन में फिर से खेलने को मन करता है.. माँ की लोरियाँ…
बंधन में ना बांधो मुझे, आज़ाद ही रहने दो.. धरा से दूर उस आकाश में, उन्मुक्त सा होकर उड़ने दो.. अभी अभी तो पंख फैलाना सीखा है मैने, थोड़ी लंबी उड़ान भरने दो, थक भी…
कभी कभी सोचती हूँ, मैं भी तुम जैसी हो जाऊँ… तुम्हारा प्रतिरूप ना सही, तुम्हारा प्रतिबिंब ही बन जाऊँ… निर्मोही तुम सी ना सही, तन्हा रास्तों पर चलना सीख जाऊँ, जब भी तड़फ़ उठे दिल…
ज़िंदगी की दहलीज़ पे, निशब्द सी खड़ी मैं, अपनी पहचान को तराशते हुए, कुछ अपनो के चेहरों पे, खोई मुस्कुराहट के मोती सजाए… चंद अरमानो की दास्तान, और कुछ उम्मीदों का काफिला पिरोए, हल्की सी…
I was tiny… growing in the womb of my loving mother I was protected in the warmth of love Still, I was curious to come out… To see the world… and to cherish the vibrance……
Thriving to make a difference… Burning to bear all the emotions… Oh! I see… There is a heart… that is still paining inside. Making silence my only companion… And listening to some cries deep inside……