माँ
लेखनी बहुत लिखी, प्रेम की भाषा भी थोड़ी बहुत सीखी, लेकिन आज माँ की शिकायत सुनी, सबके बारे में लिखती हो, मुझे क्यूँ अपनी कविता में अपीरिचित रखती हो, मैं मुस्काई, थोड़ा शब्दों की गहराई…
लेखनी बहुत लिखी, प्रेम की भाषा भी थोड़ी बहुत सीखी, लेकिन आज माँ की शिकायत सुनी, सबके बारे में लिखती हो, मुझे क्यूँ अपनी कविता में अपीरिचित रखती हो, मैं मुस्काई, थोड़ा शब्दों की गहराई…
बाबुल तुम्हारे पहलू में बैठकर एक ज़िंदगी और जी लेने को मन करता है.. तुम्हारे घर की दहलीज़ को छोड़ने से पहले, इस आँगन में फिर से खेलने को मन करता है.. माँ की लोरियाँ…