तस्सवुर
कुछ अज़ीज़ सी लगती है ये ज़िंदगी, जब तुम्हें क़रीब महसूस करती हूँ, अल्फ़ाज़ भी अब्तर से हो जाते हैं, जब तुमसे रु-ब-रु होती हूँ, आगोश में सिमट कर तुम्हारे, खुद को कुछ महफूज़ सा…
कुछ अज़ीज़ सी लगती है ये ज़िंदगी, जब तुम्हें क़रीब महसूस करती हूँ, अल्फ़ाज़ भी अब्तर से हो जाते हैं, जब तुमसे रु-ब-रु होती हूँ, आगोश में सिमट कर तुम्हारे, खुद को कुछ महफूज़ सा…
सुबह की खिलखिलती धूप से लेकर, शाम की मीठी खामोशियों की अठखेलिया, भीगी पलकों पे सजे सपनो के मोती, होठों पर कुछ अफ़साने पुराने, चाहतों का एक कारवाँ, और कुछ अपने-बेगाने, हां, बेशक़ सब कुछ…