स्पंदन

मुक्त होते प्राणो में, जीवन का बंधन, विरक्त होती सांसो में, प्रेम का स्पंदन, हमेशा से अपूर्ण ही रह जाने वाली इस यात्रा में, पूर्ण हो जाने का अविलंबन, स्वयं को जाने बिना ही, संसार…

तस्सवुर

कुछ अज़ीज़ सी लगती है ये ज़िंदगी, जब तुम्हें क़रीब महसूस करती हूँ, अल्फ़ाज़ भी अब्तर से हो जाते हैं, जब तुमसे रु-ब-रु होती हूँ, आगोश में सिमट कर तुम्हारे, खुद को कुछ महफूज़ सा…

तुम होते तो…

सुबह की खिलखिलती धूप से लेकर, शाम की मीठी खामोशियों की अठखेलिया, भीगी पलकों पे सजे सपनो के मोती, होठों पर कुछ अफ़साने पुराने, चाहतों का एक कारवाँ, और कुछ अपने-बेगाने, हां, बेशक़ सब कुछ…

द्वंद

विचारों और मान्यताओं के द्वंद में उलझे, उस एक ही की तलाश में सब चले जा रहे हैं, कभी मन में, आत्मा के मंथन में, तो कभी मंदिर में, उस एक ही की पूजा किए…

परिवर्तन की साक्षी

संघर्षों के भंवर में, सपनो की झुलसती कहानी की साक्षी, अरमानो की खुली पोटली से, खुशियों के गायब हो जाने की साक्षी, कभी सिसकती, कभी सहमती, कुछ बेचैन सी साँसों की साक्षी, मद्धम होती सूरज…

माँ

लेखनी बहुत लिखी, प्रेम की भाषा भी थोड़ी बहुत सीखी, लेकिन आज माँ की शिकायत सुनी, सबके बारे में लिखती हो, मुझे क्यूँ अपनी कविता में अपीरिचित रखती हो, मैं मुस्काई, थोड़ा शब्दों की गहराई…