एक भीषण आपदा के चलते,
जब जीवन का प्रवाह रुक सा गया,
हर दिन सड़कों पर दौड़ने का सिलसिला,
अब कुछ थम सा गया,
राहत हुई कुछ रोज की अनचाही परेशानियों से,
या शायद, जीवन को देखने का तरीका ही बदल गया..
सिमट गये जब सब घरों में अपने,
मैने कुदरत का एक नया मिज़ाज़ देखा है,
जो डरते थे पहले इंसान की आहटों से,
उन बेजुबान जानवरों को मैने सड़कों पर सरेआम देखा है,
बड़ा सुन्दर नज़ारा है प्रकृति का,
जिसमे मैने रंगों को उभरते देखा है,
पास के बगीचे में,
एक एक फूल और पत्ते को बढ़ते देखा है,
उलझ कर जीवन की भागदौड़ में,
शायद ही कभी इतने करीब से दुनिया को देख पाती,
अब सब रुक गया तो,
मैने प्रकृति को भी साँस लेते देखा है..
बड़ी विचित्र है ये रचनाकार की रचना,
मैने उसके अंश को हर जीव मे महसूस किया है,
जिसे कभी दुनिया ने तवज्जो ही ना दी,
मैने उस छोटे पतंगे को भी लंबी यात्रा करते देखा है..
अभी हाल ही में कुछ पछियों ने आँगन में घर बनाया है,
मैने उन्हे एक एक तिनके को मिट्टी में पिरोते देखा है,
बड़ी दूर तक होती थी उनकी उड़ान,
मैने उन्हे खुले आसमान मे जीवन का आनंद लेते देखा है,
दिल में सुकून सा उमड़ आता है हर दिन,
जब मैं बगीचे में हर रंग के पंछी को उड़ता देखती हूँ,
कभी देर तक चलती नोक झोंक,
तो कभी उन्हे एक दूसरे की परवाह करते देखा है,
ना जाने कितने अरसे बाद,
परिवार के साथ वक्त बीताने का मौका मिला है,
वक्त ने छीन लिया था जिब बचपन को सपने पूरे करने की आड़ में,
फिर से उन अधूरी ख्वाइशों को मन में मचलते देखा है,
कई सालों के बाद, मैने अपने पिता को थोड़ा आराम करते देखा है,
जिन्होने हमारा भविश्य बनाने के लिए,
अपना वर्तमान दाव पे लगा दिया,
उन्हे फ़ुर्सत के कुछ पल जीते देखा है,
मेरी माँ जो हमेशा कहती थी एक पल की भी फ़ुर्सत नहीं मिलती,
मैने अब उनके अधूरे अरमानो को पूरे होते देखा है,
ज़िम्मेवारियों तले दब गयी थी जो इच्छाएँ,
अब उन सपनो को हक़ीक़त बनते देखा है,
शायद एक बचपन जो उन्होने भी खोया था मेरी तरह,
बच्चों के साथ, मैने उन्हें भी बच्चा बनते देखा है,
परिस्थियों की ठोकर खा खा कर,
परिपक्व हो गयी जो जीवन की यात्रा,
उस काँटों भरे रास्ते पे,
मैने पिता को ज़िद करते देखा है,
वो आज भी हमारी खुशी के लिए जीते हैं,
उनके अनकहे लफ़ज़ो से मैने ये महसूस किया है,
जीवन की चहल पहल थम सी गयी तो,
मैने दूर बहते पानी की आवाज़ को भी सुना है,
कुछ गुनगुनाती रहती है ये हवा,
मैने इसकी धुन को अब थोड़ा करीब से समझा है,
कुछ पुरानी तस्वीरें पड़ी थी घर की बंद अलमारी में,
पलट कर उन्हें, कुछ यादों को जिया है,
जो छूट गये थे रिश्ते जीवन की भागदौड़ में कहीं,
उनका एहसास फिर से दिल के किसी कोने मे मिला है,
फुरसत के कुछ पल मिले तो,
मैने भी अपने अधूरे सपनो को जिया है,
जो खो गये थे जीवन की रफ़्तार मे कहीं,
उन लम्हों को फिर से उभरते देखा है,
ना जाने कौन सी चाहते ले गयी थी मुझे इस घर के आँगन से दूर,
खुदा ने कोई रहमत करके अब इस घर को सजाने का मौका दिया है,
सोचती हूँ कौन से रंग भर दूं इस छोटी सी दुनियाँ में,
जिस से शायद मेरा भी कोई छोटा सा ही रिश्ता है,
पहले शोर करता था सारा जहान,
प्रकृति को सबने मौन ही देखा था,
आज जब खामोश है सारा जहान,
मैने कुदरत को कुछ हलचल करते देखा है,
कुछ तो है इन रंगो में,
जिनको मैने जीवन में शायद पहली बार देखा है,
सिमट जाना चाहती हूँ मैं जिसमें,
उस प्रकृति को अब जीवन जीते देखा है !