थोड़ा बदलने की तैयारी

थोड़ा बदलने की तैयारी

सिहरती, सहमति कुछ सांसो में,

आँखो से बहते मोतियों में,

एक अनकही कहानी के पन्ने पिरोती,

मौन सी पड़ी ज़िंदगी की किताब में…

कभी हमारी मनमानी,

कभी कुदरत की कारिस्तानी,

अब कुछ भी कह लो रोते बिलखते उन बच्चों से,

जिनकी हर चाहत कहीं बह गयी पानी में…

हर तरफ तबाही का मंज़र नज़र आता है,

ना जाने किस पल कौन सा तूफान उमड़ आता है..

जिस जिंदगी को बड़े चाव से जीते थे हम,

अब उसमे भी थोड़ा डर सा नज़र आता है…

मीश्री से मीठे जो बारिश के सुर लगते थे कभी,

बहती नदियों में नज़ारे से दिखते थे जो कभी,

अब वो सरपट से शहरों मे दौड़ते नज़र आते हैं..

हाँ, वो मिल के सब तबाह कर के चले जाते हैं..

निसंकोच कभी अपराध हुआ है हमसे कोई,

जिसकी सज़ा आज कुदरत रंग बदल के दे रही है,

ना जाने कितने आँसू बहाता होगा वो खुदा भी,

जब उसकी अपनी रचना यूँ तिल तिल ख़तम होती है…

दिन रात की दौड़ है थोड़ा और कमा लेने की,

जो कमाया उसे थोड़ा और बढ़ा लेने की,

कुदरत का करिश्मा बनकर आए थे इस जहाँ में,

और आज चाहत है कागज के टुकड़ो में अपनी पहचान पीरोने की…

कुछ पा लिया, कुछ खो दिया दर-बदर भटकते हुए,

फिर भी खुद के अस्तितव को ना समझ पाए,

जिसे निखारना था उसे मिट्टी मे मिला दिया,

बढ़ती खवाइशों ने जीने का मतलब भुला दिया…

आँखो पर पट्टी बाँधे दिन रात जतन करते हैं,

जीवन को थोड़ा और सुन्दर बनाने का,

समंदर से कुछ मोती चुन कर आशियाँ सजाने का,

और फिर अंजाने में, किसी और का घरोंदा तबाह करके,

अपने शामियाने में रोशनी कर लेते हैं…

नन्ही सी फरमाइशों से लेकर

ना जाने कब हम अपने सपनो के मोहताज़ हो जाते हैं,

कुछ अपना जोड़ ना पाए तो,

किसी और के सपनो से कुछ चुरा लाते हैं…

कितनी सीमित सी सोच हो गयी है हमारी

बस अपने सुकून के लिए जीते चले जाते हैं,

किसी अपने का सब कुछ तबाह हो जाने पर भी,

हमारे पास क्या बचा ये गिनते जाते हैं…

सदियों से कुदरत को तबाह करते आए हैं,

आज वो वापिस जवाब देने को तैयार खड़ी है,

जीतने हमने काँटे बोए हैं इस धरा पे,

शायद अब खुद ही उनपे चलने की बारी है…

क्या खोया, क्या पाया यहाँ आकर,

अब इसका लेखा जोखा करने का वक्त कहाँ है…

किसी रोते के चेहरे पर दो पल मुस्कुराहट ले आएँ,

बस इतना ही अब बाकी करने को बचा है…

अवीरल धारा में बहती, मासूम सी कुछ कहानियों में,

कुछ और किस्से जोड़ने की अब बारी है,

अपनी काबिलियत को पहचान कर,

अब किसी और के लिए कुछ करने की तैयारी है…

बहुत जी लिए हम सब बस अपने लिए,

अब खुद को भुला के…

जीवन को समर्पण करने में ही होशियारी है…

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