कभी – कभी….
लंबी या छोटी, जैसी भी है ज़िंदगी, इसकी ख़ासियत को महसूस करने के लिए, कभी कभी, अच्छा होता है बस खामोश हो जाना… थोड़ा मुस्कुराना, और थोड़ा सुकून के कुछ पल बिताना, कभी कभी, अकेले…
लंबी या छोटी, जैसी भी है ज़िंदगी, इसकी ख़ासियत को महसूस करने के लिए, कभी कभी, अच्छा होता है बस खामोश हो जाना… थोड़ा मुस्कुराना, और थोड़ा सुकून के कुछ पल बिताना, कभी कभी, अकेले…
वो कहते हैं की स्त्रियां कभी ज्ञानी न हो पाई, आध्यात्म की पराकाष्ठा को, जन्म मरण की बाधा को न समझ पाई। पर वो ये देखना भूल गए के स्त्रियों के दामन में गृहस्थी का…
कुछ तो है,एक एहसास सा,जो अधूरा सा है तुम्हारे बिना,ज़ज़्बात में, सिमटा हुआ,कोई अंजान सा कारवाँ,जिसमे गुम है,मेरा सारा जहाँ… पल भर में कभी भीड़ में भी,रूह के करीब से आ जाते हो तुम,और फिर…
ज़िंदगी की कश्मकश में थोड़ा और उलझना चाहती हूँ, भीड़ का हिस्सा बनने से पहले, मैं बाग़ी होना चाहती हूँ, सब पा लिया हो जिस ज़िंदगी में उसका फलसफा ही क्या होगा, मैं सब कुछ…
संघर्षों के भंवर में, सपनो की झुलसती कहानी की साक्षी, अरमानो की खुली पोटली से, खुशियों के गायब हो जाने की साक्षी, कभी सिसकती, कभी सहमती, कुछ बेचैन सी साँसों की साक्षी, मद्धम होती सूरज…
जीवन के अन्नन्त प्रवाह में, धूंदले से आसमान तले, हर दिन की दौड़ धूप में, ना जाने कितने सपनो को पनपते देखा है… हाँ, मैने परिवर्तन को एक भयंकर रूप लेते देखा है..! कभी करवट…
I was tiny… growing in the womb of my loving mother I was protected in the warmth of love Still, I was curious to come out… To see the world… and to cherish the vibrance……
सिहरती, सहमति कुछ सांसो में, आँखो से बहते मोतियों में, एक अनकही कहानी के पन्ने पिरोती, मौन सी पड़ी ज़िंदगी की किताब में… कभी हमारी मनमानी, कभी कुदरत की कारिस्तानी, अब कुछ भी कह लो…
अपनो की दुनिया में, अंजान से रास्तों पे.. मंज़िल की तरफ बढ़ता मैं… अनचाही परिस्थियों से, लड़ता, उलझता.. सवालों के घेरे में, कटघरे में खड़ा मैं… समय से पहले… अपने जीवन की परिभाषा को समझता…..
एक भीषण आपदा के चलते, जब जीवन का प्रवाह रुक सा गया, हर दिन सड़कों पर दौड़ने का सिलसिला, अब कुछ थम सा गया, राहत हुई कुछ रोज की अनचाही परेशानियों से, या शायद, जीवन…