नदी की धारा सी मैं,
समंदर से मिलने को आतुर,
भावनाओं के अवीरल प्रवाह में,
सब भूल कर बह जाने को आतुर.
कभी सिमटती, कभी सिसकती,
अपनी ही साँसों के एहसास से अंजान.
बिखरे हुए यादों के मोती संजोती,
अनगिनत विचारों के प्रवाह में,
पल भर में खो जाने को आतुर.
कोई एहसास धड़कनो में छुपाए हुए,
अंजानी सी खामोशी, होठों पे दबाए हुए,
आँखो से सब राज़ ब्यान करके,
अंजाम की परवाह छोड़कर,
एहसास के प्रवाह से सीँचे हुए,
जीवन का हर पल जी लेने को आतुर.
आँखो से बहते आसुओं की धारा में,
अपनी मुस्कुराहट पीरो कर,
पलकों में सपनो का दिया जलाए,
अरमानो के असीम प्रवाह में,
हर चाहत दिल में समेट कर,
अनियंत्रित धारा सी, बह जाने को आतुर.
किसी अनकही कहानी के पन्नो को पलटती,
समय की नवीन हलचल से व्याकुल,
नदी की धारा सी मैं,
समंदर से मिलने को आतुर.
भावनाओं के अवीरल प्रवाह में,
सब भूल कर बह जाने को आतुर|
अपने अस्तित्व की तलाश में,
खुद से ही अंजान होकर,
पल पल उमड़ते अनगिनत सवालों के प्रवाह में,
बस एक ही जवाब की आस में,
सदियों तक बह जाने को आतुर.
ना छोर हो जिस नदी का कोई,
बस समंदर में वीलीन हो जाने की ख्वाइश लिए,
अपने ही मन की आहट से अपरिचित,
किसी अंजान से चेहरे में दुनियाँ भुलाए,
बेबसी के मंज़र में बह जाने को आतुर.
मौन हुए लफ़्ज़ों में एक कहानी सज़ाकर
खामोश निगाहों से खुद को तराशकर,
अपने होने के एहसास से अंजान,
बस उम्मीदों के प्रवाह में,
अंतिम साँस तक बह जाने को आतुर.
सींच कर अपने ख्वाबों का जहान,
अपरिचित से परिचित होते ख्यालों में समाकर,
निशब्द सी खड़ी, चाहत का रुख़ अपनाकर,
नदी की धारा सी मैं,
समंदर से मिलने को आतुर.
भावनाओं के अवीरल प्रवाह में,
सब भूल कर बह जाने को आतुर|