तेरे हाथों की लकीरों में,
धूँदला सा कहीं मेरा नाम तो होगा,
जिस धागे से बँधा है हर रिश्ता मेरा,
उसका एक छोर तेरे दिल से ही तो जुड़ता होगा,
सागर के किनारे बैठ कर
प्यासी रह जाती है जो रूह मेरी,
उन लहरों के बहाव में,
कहीं तेरा अक्ष चमकता होगा,
भूल जाती है कभी ये ज़िंदगी अपनी पहचान भी,
शायद उस लम्हे में तेरा चेहरा आँखो मे उतरता होगा,
सिमट जाती हूँ मैं तन्हाई के जिस आघोष में,
उसमे भी कहीं तेरा एहसास बसता होगा,
थक जाती हूँ खुद को तलाश करते करते,
हर आईने मे शायद तेरी सूरत का असर रहता होगा,
मैं टूटी हुई एक कश्ती सी तेरी ओर बहती हूँ,
बस इस आस में के शायद…
तेरे दिल में भी कोई दबा सा तूफान रहता होगा,
किस्मत की डोर ना जाने किस किनारे पर खींच लाई है,
जहाँ मीलों तक बस तेरी याद और तन्हाई है,
मैं थम भी जाऊं इस राह पर अगर,
तेरी चाहत कहाँ कभी रुक पाई है,
सिसकती सी हर साँस मे तेरे होने का एहसास रहता है,
अब हर ख्वाब हाथों से रेत सा फिसलता है,
ना पास होते हो तुम, ना तुम्हारे दूर होने की तड़फ़ है,
अब मैं कहाँ हूँ इस जहाँ में,
बस तेरी ही मोहोब्बत है,
बिखर भी जाऊं जो इस लम्हा तेरी याद में,
तुझे पा लेने की चाहत फिर से टूटे दिल को जोड़ देती है,
जिस राह का कोई किनारा नही,
उस पर तेरी चाहत नयी मंज़िल बना देती है.
आज भी धुंधली सी यादों में तेरे होने का एहसास रहता है,
ऐसा कोई लम्हा नहीं जिस में मेरा दिल अकेला रहता है,
हर रात आज भी आसुओं में गुज़र जाती है,
और सुबह की पहली दुआ, फिर से लबों पे तेरा नाम दे जाती है,
सोचती हूँ कभी तुम्हारे ज़हन में कोई याद छोड़ जाऊंगी,
मैं तुम्हारे लिए जीती थी ये पैगाम छोड़ जाऊंगी,
लेकिन ये ज़िंदगी भी देखो कितनी बेरहम सी है,
रूह को बस तुझसे जोड़े रखना चाहती है.
मैं कोई धुँधला सा पन्ना हूँ शायद तुम्हारी ज़िंदगी का,
जिससे तुम कभी पढ़ ही नहीं पाए,
कहना तो बहुत कुछ चाहती थी ये आँखे,
पर तुम इनमे झाँक ही नहीं पाए,
समेट लिया धीरे धीरे मैने अपने हर एहसास को,
लेकिन देखो मैं तुम्हारी चाहत ना छोड़ पाई,
ना तुम्हारे बिना ज़िंदगी छूटी,
धूँदला सा कहीं मेरा नाम तो होगा,
ना तुमसे मिलने की आस भुला पाई.
आज भी सोचती हूँ..
तेरे हाथों की लकीरों में,
जिस धागे से बँधा है हर रिश्ता मेरा,
उसका एक छोर तेरे दिल से ही तो जुड़ता होगा,