जीवन के अन्नन्त प्रवाह में,
धूंदले से आसमान तले,
हर दिन की दौड़ धूप में,
ना जाने कितने सपनो को पनपते देखा है…
हाँ, मैने परिवर्तन को एक भयंकर रूप लेते देखा है..!
कभी करवट लेकर उम्मीद की,
कभी कुछ पा जाने के जुनून से बँधे,
कुछ अपनो के चेहरे की मुस्कुराहट पिरोए,
अनगिनत मोतियों की माला को बिखरते देखा है…
उन नन्हे से हाथों को,
मिट्टी से सने ख्वाबों को
थोड़ा करीब से देखा है…
तिल तिल करते टूटते अरमानो को,
और जीवन के तूफ़ानो को…
सदियों से आँखो में दबे आसुओं संग,
अब बहते देखा है…
हाँ, मैने इस महा-परिवर्तन को
थोड़ा विचित्र रूप लिए देखा है…
ना जाने कितने अरसे से,
बंद हैं हम अपने घरोंदों में,
जीवन की आस लगाए,
और उम्मीदों की दुनिया सजाए,
लेकिन पास ही के झोंपड़े में मैने,
कुछ नन्ही परियों को,
अनगिनत आँसू बहाते देखा है…
बेबस से कुछ सपनो को,
भारी हुए कदमों से रौंधते हुए,
मैने मासूमियत की हद को,
जीवन के बोझ तले दबते देखा है…
पल भर के लिए सोचती हूँ…
क्या पा लिया हमने जीवन में,
अगर हम किसी बेबस का सहारा ना बन पाए,
सिसकती, सहमती कुछ सांसो का,
और बेपरवाही से बहती कश्तियों का किनारा ना बन पाए…
महल अनगिनत सज़ा लिए अपने लिए,
पर किसी बेघर को ना अपना पाए,
हमने अपने सपनो में तो रंग भर लिए,
पर किसी की उजड़ती दुनिया को ना संवार पाए…
एक भयंकर विपदा से बचने के लिए,
जब हम अपने आशियाने में दुबक कर बैठ गये,
उन ख़ौफ़ से भरे महीनो में मैने,
भूखे पेट उन नन्हे बच्चों को बिलखते देखा है…
शायद ये एक गाँव या एक शहर की बात नहीं,
ये महा-प्रलय दुनियाँ ने देखी है,
महामारी तो एक बहाना है,
हमने इन चंद दिनो में जीवन की महत्ता समझी है…
अपने वजूद को कितना भी निखार लें हम,
अगर किसी के काम ना आ सकें तो जीना बेकार ही समझो,
अनमोल है हर साँस धरा पर,
अगर किसी को हौंसला ना दे पाएँ तो खुद को असमर्थ ही समझो…
बहुत कुछ देखा है हमने बीते इन दिनो में शायद,
लेकिन अब इन परिस्थियों से सबक लेने की बारी है,
सिर्फ़ अपने लिए नहीं,
अब इंसानियत के लिए जीने की तैयारी है…
हाथ बढ़ाएँ हम भी,
किसी बेबस के काम आ पाएँ,
किसी अंजान के चेहरे पर मुस्कुराहट लाने के लिए,
चाहे अपने सपनों को दाव पर लगा जाएँ,
जीवन की परिभाषा को अब,
शायद थोड़ा बदलना होगा,
ना जाने कब से सिर्फ़ अपने लिए जी रहे हैं हम,
अब मानवता के रंग में रंगना होगा,
अपने वजूद से हम भी प्यार कर पाएँ,
कुछ तो ऐसा अनुपम हम सभी को करना होगा,
हाँ, हमे अपने ही जीवन को,
अब समाज के लिए समर्पण करना होगा!
कुछ बदलाव की उम्मीद लिए,
पहले खुद को ही बदलना होगा…!
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Badalna hoga…. Pahle khud ko hi badalna hoga… True lines
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