सुबह की खिलखिलती धूप से लेकर,
शाम की मीठी खामोशियों की अठखेलिया,
भीगी पलकों पे सजे सपनो के मोती,
होठों पर कुछ अफ़साने पुराने,
चाहतों का एक कारवाँ,
और कुछ अपने-बेगाने,
हां, बेशक़ सब कुछ है यहाँ,
पर तुम होते तो बात कुछ और होती..
थोड़ी हलचल ज़हन में,
थोड़ी हरकत धड़कन में,
बरसात के पहले इंद्रधनुष सी,
रंगीन सी इस ज़िंदगी में,
कुछ रंग ज़माने के,
कुछ ठोकर खाकर जो घाव बने,
कुछ उम्मीदों के कारवाँ,
और कुछ मौज़ों से भरे काफिले,
हां, सब कुछ है यहाँ,
पर तुम होते तो बात कुछ और होती…
हर सुबह तुम्हारी चाहतों का ख्वाब लिए चली आती है,
हर शाम तुम्हारी याद से, मेरी आँखे भर जाती हैं,
थोड़ा अंजान ही बनी रहती हूँ मैं अपनी ख्वाइशों से फिर भी,
क्यूंकी तुम पास नहीं तो ज़िंदगी कुछ बेरंग सी लगती है…
क्या शिकायत, क्या शिकवा, क्या किस्से पिरौउँ मैं,
तुम्हे फ़ुर्सत ही नहीं मुझे सुनने की, तो किस से कहूँ मैं..
मौन सी होकर तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ हर पल,
क्यूंकी हर लम्हा यही कहता है
के तुम साथ होते तो बात कुछ और होती…
तुम्हारे नूर से सुबह
और तुम्हारे आगोश में शाम होती,
बारिश की बूँदों मे प्यास
और हवा में महक होती,
फिर हर नज़ारे में कुछ खास बात होती,
हर किनारे पे तुमसे मिलने की आस होती…
हम भटक जाते शौक से अंजान राहों पर,
तुमसे फिर मिल जाने की एक आस होती,
एक पल में ही ज़ी लेते हम ज़िंदगी,
बाकी साँसे बस तुम्हारे नाम होती…
मौसम की बातें भी हसीन लगती,
सुनसान राहें भी अज़ीज़ लगती,
तुम्हारा हाथ थामकर चलती तो,
ज़िंदगी के हर पन्ने पे कोई खूबसूरत तस्वीर होती…
मैं खो जाती कहीं तुम्हारी चाहत में,
लौट के आने की कोई वजह ना होती,
ना मेरी कोई पहचान,
ना किसी को मुझसे कोई उम्मीद होती,
मैं बेरंग से ज़माने में,
तुम्हारे रंग में रंग जाती,
और तन्हा सी ये ज़िंदगी,
महफ़िल सी सज़ी होती…
कुछ सोए अरमानो के भी,
पंख निकल आते,
मैं मुस्कुराती कुदरत के करिश्मे पे,
और तुम्हारी बाहों में जन्नत सी खुशी होती,
बहुत खूबसूरत है ये ज़िंदगी,
इसमे कोई शक़ नहीं मुझे,
मगर फिर भी दिल कहता है,
तुम साथ होते तो बात कुछ और होती…
और मेरी हर साँस,
तुम्हारे नाम होती…!
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