कुछ अज़ीज़ सी लगती है ये ज़िंदगी,
जब तुम्हें क़रीब महसूस करती हूँ,
अल्फ़ाज़ भी अब्तर से हो जाते हैं,
जब तुमसे रु-ब-रु होती हूँ,
आगोश में सिमट कर तुम्हारे,
खुद को कुछ महफूज़ सा समझती हूँ…
मिट जाए जो हस्ती मेरी तुम्हारे एहसास में घुलकर,
फिर तस्सवुर में बेनज़ीर सी ज़न्नत देखती हूँ,
आज़ाद सी इस दुनिया में,
कुछ बेज़ार सी ज़िंदगी में,
तुम्हारे बिना,
हर हसरत अधूरी लगती है,
और पाक इस रूह की,
कोई चाहत मुकम्मल सी दिखती है,
दास्तान कोई अनकही सी,
तस्वीर कोई दिलकश सी,
तस्लीम की तिश्नगी लिए,
बेखौफ़ सी अंजान राहों पर,
ज़मीर को शुन्य में पिरोए,
ज़िंदगी अपनी ही पहचान को,
खुद से ही जुदा करती है…
कितना सुकून होता है उस पल में,
जब दुनिया को भुलाकर मैं,
शाम की धुंधली आरज़ू बनकर,
तुम्हारे ख्वाबों में गुम हो जाती हूँ,
जन्नत को अपने आँचल में समेट कर,
मैं तुम्हारी परछाई बन जाती हूँ,
फिर आफताब की पहली किरण संग,
अपना आस्तित्व मिटाकर,
मैं तुम्हारी रूह में ही गुम हो जाती हूँ,
ना आगाज़ कोई,
ना अंजाम कोई,
इस मोहोब्बत का ना नाम कोई,
असबाब की ख्वाइश नहीँ,
और आज़माइश की चाहत नहीं,
ना वजूद कोई,
ना इकरार हुआ,
बस एहसास में ही इख़्तियार हुआ,
अब बस थोड़ी बेकरारी है,
और मिट जाने की तैयारी है,
हाँ फिर कहती हूँ…
कुछ अज़ीज़ सी लगती है ये ज़िंदगी,
जब तुम्हें करीब महसूस करती हूँ,
अल्फ़ाज़ भी अब्तर से हो जाते हैं,
जब तुमसे रु-ब-रु होती हूँ,
आगोश में सिमट कर तुम्हारे,
खुद को कुछ महफूज़ सा समझती हूँ…
मिट जाए जो हस्ती मेरी तुम्हारे एहसास में घुलकर,
फिर तस्सवुर में बेनज़ीर सी ज़न्नत देखती हूँ…!
??
Thank You…