नज़र

नज़र

एक नज़र ही काफ़ी है,

दिल में दस्तक देने के लिए,

एक दुआ ही काफ़ी है,

हर ख्वाइश मुक्कमल करने के लिए.

इंतज़ार कर लूँगी मैं ज़िंदगी भर शायद,

तुम्हारी होकर बस एक लम्हा जी लेने के लिए…

प्यार बेपनाह किया हमेशा तुमसे,

पर ज़ुबान पे नाम कभी लाया ही नहीं,

मेरी तन्हाई तुम्हें बदनाम ना कर दे कहीं,

ये सोचकर तुमसे रिश्ता बनाया ही नहीं,

अपनी पहचान को तुम संग गुमनाम करके,

तुम्हारी हो जाने का सपना.. सजाया ही नहीं,

और तुम्हे नज़र भर कर देख लूँ पल भर,

वो पल ज़िंदगी में कभी आया ही नहीं…

आईने के सामने बैठकर,

खुद में तुम्हे निहार लेती हूँ,

अपना वजूद खोकर हर दिन,

खुद को तुम्हारे और करीब कर लेती हूँ,

ज़िंदगी से अब कोई वास्ता है कहाँ,

अब मैं बस तेरी परछाई से बातें कर लेती हूँ…

तेज़ धूप मे ठंडी चादर बनकर,

तेरी खामोशी मे एक आहट बनकर,

अपने अस्तित्व को मिट्टी में मिलाकर,

हर चाहत को ज़हन में दफ़नाकर,

तुझसे मिलती हूँ एक अजनबी की तरह,

और फिर शाम के कोहरे में,

ज़न्नत के सवेरे में,

उस नज़र की ख्वाइश लिए,

गुम हो जाती हूँ मैं तेरी याद बनकर…

जिस नज़र से मैने तुझे देखा कभी,

नज़र तुझसे चुराकर,

के नज़र राज ना खोल दे कोई..

मैं तेरी नज़र से ही,

यूँ दूर हो गई,

के आज चाहो भी तुम तो,

मेरी नज़र में अपना अक्ष ना ढूंड पाओगे,

तुम्हे खो देने के डर से,

जो ज़ाहिर ना मैने किया कभी,

उस प्यार को शायद अब तुम,

मेरी ही नज़र में दफ़न पाओगे…

ये सिलसिला कुछ पाने और खोने का,

यूँ ही चलता रहेगा ज़िंदगी भर,

बस चाहत पे मेरी हमेशा,

परदा ही पाओगे अब तुम…

जो कहानी शुरू हुई मेरे दिल से,

उसे मेरे ही ज़हन में गुमसूम रहना होगा,

कोई नाम दे इस मोहोब्बत को तुम्हारा,

उस से पहले मेरी नज़रों में छुपा कोई राज पढ़ना होगा…

तुम्हे मुझसे जोड़ता हो जो लम्हा,

उसे तलाश करके, मेरी सांसो से जोड़ना होगा,

रूह से तो तुम्हे जुदा ना कर पाऊँगी,

बस ज़िंदगी भर मुझे शायद खामोश ही रहना होगा…

मेरे होठों पे तुम्हारा नाम,

तुम्हे बदनाम ना कर दे कहीं,

ये सोचकर तुम्हारे प्यार को,

मेरी नज़र में ही सिमटकर रहना होगा…!

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