कभी कभी मैं हाथों की लकीरों में,
तुम्हारा नाम ढूँढने की कोशिश करती हूँ,
कभी कभी मैं अपनी तन्हाई में,
तुमसे मिलने की साज़िश करती हूँ,
कहानियाँ तो बहुत लिखी हैं मैने अब तक,
बस किसी दास्तान को तुमसे शुरू करके,
उसमे अपनी पहचान पा लेने की जुर्रत करती हूँ,
लेकिन देखो किस्मत का खेल भी कैसा है,
मैं ख्वाबों में तुम्हारे कितने पास,
और हक़ीक़त में तुमसे कितनी मुखत्लिफ रहती हूँ…
कुछ लम्हों की उदासी मुझे बेचैन कर देती है,
लेकिन तुमसे मिल जाने की हसरत,
मुझे फिर जी लेने का हौंसला देती है,
हर दिन एक नये रास्ते पर,
हमारे रिश्ते को तराशने निकल पड़ती हूँ,
और फिर दूर कहीं सेहरा पर,
मैं खुद को अकेला पाकर, कुछ लम्हा रो लेती हूँ,
अपनी रूह से तुम्हारा पता पूछकर,
फिर मैं एक नये सफ़र पर चल देती हूँ…
कभी कभी मैं हाथों की लकीरों में,
तुम्हारा नाम ढूँढने की कोशिश करती हूँ,
कभी कभी मैं अपनी तन्हाई में,
तुमसे मिलने की साज़िश करती हूँ,
तुम बेख़बर हो शायद मेरे वजूद से भी,
लेकिन मैं तुम्हारी परछाई में अपना अक्ष ढूँढ लेती हूँ,
तराश कर रेत में बिखरे मोती,
मैं खुद को हवा संग बेरंग कर देती हूँ,
मचलती, तड़फती इन समंदर की लहरों संग,
मैं किनारे पर बैठी तुम्हे करीब से महसूस करती हूँ,
हर लम्हा जो तुम्हारे होने की गवाई देता है
अपने उस अस्तित्व को तुम्ही में मिटा कर,
मैं खुद को हर बंधन से मुक्त कर लेती हूँ…
कभी कभी मैं हाथों की लकीरों में,
तुम्हारा नाम ढूँढने की कोशिश करती हूँ,
कभी कभी मैं अपनी तन्हाई में,
तुमसे मिलने की साज़िश करती हूँ,
बेरंग सी इस दुनिया में मैं,
खुद को तुम्हारे रंग में रंगने की चाहत रखती हूँ,
जिसकी कभी मद्धम ना हो रोशनी,
उस शमा के साथ जलकर,
बेपरवाह सी मैं खुद को शीतल करती हूँ,
अपनी भावनाओं के प्रवाह में,
फिर एक नयी कहानी के पन्नो पर,
मैं तुम्हारा नाम लिखती हूँ…
कोई रिश्ता नहीं हमारा,
फिर भी मैं तुम्हारी हो जाने की फरियाद करती हूँ,
लेकिन फिर दुनिया के फीके पड़ते रिश्तों की कहानी में उलझकर,
मैं खुद को इन खवाबों में ही महफूज़ रखती हूँ,
तुम्हारे होने के बाद भी अकेली ना हो जाऊँ कहीं,
इसलिए, तुम्हारे इंतज़ार में खुद को मशरूफ रखती हूँ,
कभी कभी मैं हाथों की लकीरों में,
तुम्हारा नाम ढूँढने की कोशिश करती हूँ,
कभी कभी मैं अपनी तन्हाई में,
तुमसे मिलने की साज़िश करती हूँ,