कुछ अनकहे से लफ़्ज़ों को,
आँखो से पिरोकार ज़ज़्बातों में,
खामोशियों की दास्तान लिखते हुए,
अरमानो से सजी हर शाम में,
शायद एक दिन हर ख्वाब मुकम्मल हो जाए,
जब भी तुम्हे आपने करीब पाऊँ,
हां, बेपनाह मोहब्बत हो जाए…!
बादलों में छिपे बूँदो के कारवाँ सा,
वादियों में बसे खुशनुमा सूकून सा,
झरनो संग बहते रूह को छू जाने वाले गीत सा,
दिल का हर सरगम गुनगुनाता हो जिसे,
उस ज़र्रे ज़र्रे में बसे तेरे एहसास का,
जब भी मेरे ज़हन में ख्याल आए,
हां, फिर से, बेपनाह मोहब्बत हो जाए…!
शिकायतों के सिलसिले से कुछ गैर सा रिश्ता हो जाए,
हसरतें तुमसे जुड़ जाने की कुछ ख़ास हो जाएँ,
ज़िंदगी के हर सफ़र पर तुम्हारा हाथ थामकर चल दूं,
और हर सफ़र की मंज़िल पर तुम्हारा मिलना ही तय हो जाए,
फिर सब कुछ खो कर जो फकीर भी हो जाऊं तो,
तेरे अक्ष में ही सही,
मुझे बेपनाह मोहब्बत मिल जाए…!
अधूरी सी ज़िंदगी के, अंजान से सफ़र के,
किसी मोड़ पर एक सपने की तरह मिल जाओ जो कभी तुम,
मैं अपने वजूद की कहानी में,
कुछ पन्ने जोड़ लूँ तुम्हारे नाम के,
फिर चाहे सफ़र छोटा ही क्यूँ ना हो,
उस राह के हर मंज़र से,
कुछ अपना सा समेट कर,
तुम्हारी चाहत की कहानी लिए,
एक दिन कहीं, गुम हो जाऊँ मैं,
हां, तुम्हारी बेपनाह मोहब्बत में,
खुद को तुम्हारे रंग मे रंगकर,
तुम जैसी ही हो जाऊँ मैं…!