कुछ तो है,
एक एहसास सा,
जो अधूरा सा है तुम्हारे बिना,
ज़ज़्बात में, सिमटा हुआ,
कोई अंजान सा कारवाँ,
जिसमे गुम है,
मेरा सारा जहाँ…
पल भर में कभी भीड़ में भी,
रूह के करीब से आ जाते हो तुम,
और फिर तन्हाई में,
एक आहट बनकर,
मेरी साँसों संग बहते हो तुम,
कुछ तो है,
जो तुम्हारे होने से,
अपना सा लगता है,
और फिर अंजान सी इस दुनिया में,
सब सपना सा लगता है…
किसी दिन आओ जो तुम मेरी ज़िंदगी में,
एक कहानी का किस्सा बनकर,
मोहब्बत का हर एहसास लेकर,
बँध जाऊँ तुमसे,
एक अटूट सा रिश्ता बनकर,
तुम्हारे कदमो की आहट सुनकर,
तन्हा से सफ़र पर चल दूं,
जिस सफ़र पर हो साथ तुम्हारा,
उस पर मैं,
बेख़बर सी चल दूं….
कुछ तो है,
एक एहसास सा,
जो अधूरा सा है तुम्हारे बिना,
ज़ज़्बात में, सिमटा हुआ,
कोई अंजान सा कारवाँ,
जिसमे गुम है,
मेरा सारा जहाँ…
किसी दिन अपने वजूद को मैं,
तुम्हारी परछाई में समाकर,
अपने पहचान से हर नाता छुड़ाकर,
रंग जाऊँ तुम्हारे रंग में,
बेसूध सी होकर,
शाम की ढलती धूप में,
नयी सुबह के उस सुकून में,
हर बात मे, हर सांस में,
चाहत की उस किताब में,
जिसमें ज़िक्र तुम्हारा होता है,
हर पन्ने पर,
हर किस्से में,
और दिल की हर एक
आवाज़ में,
कुछ तो है,
एक एहसास सा,
जो अधूरा सा है तुम्हारे बिना,
ज़ज़्बात में, सिमटा हुआ,
कोई अंजान सा कारवाँ,
जिसमें गुम है,
मेरा सारा जहाँ…
किसी दिन तुम्हारे होने से,
अपने होने की वजह पाकर,
ज़िंदगी को थोड़ा और संवार लूँगी,
और फिर खुद को खोकर कहीं तन्हाई में,
मैं तुझमे ही पूर्ण हो जाऊँगी…!