कभी – कभी….

लंबी या छोटी,

जैसी भी है ज़िंदगी,

इसकी ख़ासियत को महसूस करने के लिए,

कभी कभी, अच्छा होता है बस खामोश हो जाना…

थोड़ा मुस्कुराना, और थोड़ा सुकून के कुछ पल बिताना,

कभी कभी, अकेले ही तन्हा रास्तों पर निकल जाना,

और फिर कभी किसी का हाथ थामकर, थोड़ा हक़ जताना,

किसी गुमनाम सी ज़िंदगी से बाहर निकल कर,

कभी कभी अच्छा होता है किसी के करीब हो जाना,

और फिर किसी पल में, अपनी पहचान को तराशने के लिए,

लौट कर अपने अस्तित्व में चले आना,

लेकिन सबसे ज़रूरी है,

उस कभी कभी के बीच का फ़र्क समझ पाना…

कभी कभी, अच्छा होता है किसी के काँधे पर सर रखकर,

बस आँसू बहाना,

बिना किसी परेशानी के भी,

किसी को कस कर गले से लगाना,

और फिर कभी, अपने आस पास की उस नकाबपोश दुनिया को समझकर,

अपने घाव, अपने ही लहू से छुपाना…

लेकिन हाँ, सबसे ज़रूरी है,

उस कभी कभी के बीच का फ़र्क समझ पाना…

किसी को अपना कहना, और किसी को अपने दिल का हाल सुनना,

कभी कभी अच्छा होता है, अपनी ज़िंदगी में किसी को बहुत अज़ीज़ बनाना,

और ज़िंदगी के किसी मुश्किल दौर में,

किसी पर भरोसा करने से पहले,

किसी को करीब से परख कर, संभल कर लौट आना,

लेकिन हाँ, सबसे ज़रूरी है,

उस कभी कभी के बीच का फ़र्क समझ पाना…

कभी कभी सुकून देता है, सुबह उन पँच्छियों का चहचाहना,

और फिर किसी पल में, हमे अच्छा लगता है रात में तारों का टिमटिमाना,

बात हमेशा दिन के किसी पहर के अच्छे लगने की नहीं होती,

कभी कभी, अच्छा होता है, दिल के हाल के मुताबिक, अपना आशियाना बनाना,

लेकिन हाँ, सबसे ज़रूरी है,

उस कभी कभी के बीच का फ़र्क समझ पाना…

कभी कभी, अच्छा होता है ख्वाबों को बहुत करीब से जी कर आना,

किसी नये सवेरे के साथ, ज़िंदगी को कुछ उम्मीदों से सजाना,

लेकिन कभी कभी, हमे सीखना पड़ता है, नयी कहानिया संजोना,

ज़िंदगी के अनुभव के हिसाब से, माला में कुछ नये मोती पिरोना,

कुछ रिश्तों में अपने आप को निखार लेना,

और कुछ अपनो के हिसाब से खुद को संवार लेना,

कभी कभी, अच्छा होता है किसी के लिए थोड़ा बदल जाना,

और कभी, किसी को अपनी हद में बाँध लेना,

लेकिन हाँ, सबसे ज़रूरी है,

उस कभी कभी के बीच का फ़र्क समझ पाना…

कभी कभी अच्छा होता है अपने आप को तराश लेना,

ज़िंदगी की ठोकरों के औज़ार बनाकर,

अपने आप को निखार लेना,

तैयार होना एक नये संघर्ष के लिए,

और फिर जीतकर जंग अपने हुनर से,

लौट कर अपने आशियाने में, टूटकर बिखर जाना,

कभी कभी अच्छा होता है, पत्थर सा बन जाना,

और फिर कभी, मोम सा पिघल जाना,

लेकिन हाँ, सबसे ज़रूरी है,

उस कभी कभी के बीच का फ़र्क समझ पाना…

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1 Comment

  1. The most adorable piece of poetry.Keep it up dear.The best part of your writings is that it appeals to one’s thoughts,feelings and experiences.
    Keep sharing!!!

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