वो कहते हैं की स्त्रियां कभी ज्ञानी न हो पाई,
आध्यात्म की पराकाष्ठा को,
जन्म मरण की बाधा को न समझ पाई।
पर वो ये देखना भूल गए के स्त्रियों के दामन में गृहस्थी का बोझ,
संतान की बागडोर और समाज के बंधन डालकर,
कितने पुरुष संत हो गए।।
बिना किसी को कारण बताए,
बिना किसी को साक्ष्य बताए,
निकल गए जो यात्रा पर,
उनके घर पर भी देखो कभी,
कैसे आंखो में आसूं छुपाए,
जी रही है कोई नारी दोहरी जिंदगी,
वो समेट कर रखती है घर की इज्ज़त,
बांध कर रखती है हर रिश्ते की डोर,
और अपने दामन से, मर्यादा का धागा।
जो छोड़ गए उसे अपने जीवन के अर्थ की खोज में,
उनके पीछे उनके जीवन का निचोड़ लिए,
वो खड़ी है निशब्द, निर्विकार, निर्लिप्त सी होकर,
अपने ही दामन में अपना हर घाव छुपाकर।
तुम जन्म मरण के सब भेद पा गए,
अपनी इस निर्बाध यात्रा में,
और वो अपना जीवन ही भूल गई
तुम्हारे हिस्से की बाधा मिटाने में।
जो कहते हैं स्त्रियां समाज पर बोझ हो गई,
बिना पुरुष के अपूर्ण और बिना सुरक्षा के नाजुक धागे की डोर बन गई,
जरा झांके कभी उसकी क्षमता के पिटारे में,
वो तुम्हे जन्म देते हुए, मृत्यु समान पीड़ा लिए,
एक और दुनियां में जीने को तैयार हो गई।
वो नौ महीने अपनी कोख में रख सकती है एक नई जिंदगी,
और बेजुबान इस बच्चे की समझ लेती है हर मुश्किल भी,
लेकिन तुम्हारी क्षमता में नहीं
उसके चेहरे पर दबी परेशानियों को समझा पाना,
उसकी मुस्कुराहटों के पीछे के दर्द को समेट पाना|
तुम हमेशा ही अपने रुतबे, साख
और पहचान का परचम लहराते रहे,
वो हर रूप में तुम्हारी ही परछाई बनकर,
तुम्हारे जीवन की परिभाषा को बुनती रही,
कभी मां,
कभी बहन,
कभी बीवी
तो कभी बेटी बनकर,
तुम्हारे बनाए समाज की परंपरा को बुनती रही।
तुम ज्ञानी बन गए, वो अबोध ही रह गई,
तुम धनवान बन गए वो निरर्थ ही रह गई,
लेकिन जब तुम देखो अपनी यात्रा को जरा गौर से,
उसके संघर्ष में अपने जीवन की ऊंचाई का बोध पाओगे,
जहां तुम्हारा सामर्थ्य तुम्हें चुनौती देने लगे,
उस से आगे तुम स्त्री को सबल खड़ा पाओगे।
बड़ी हैरानी होती है मुझे ये देख,
पुरुष के नाम से समाज के सब प्रयोजन बन गए,
और जिस नारी ने समाज को जोड़े रखा है,
उस के हिस्से में बस नियम रह गए।
वो कहते हैं की स्त्रियां कभी ज्ञानी न हो पाई,
आध्यात्म की पराकाष्ठा को,
जन्म मरण की बाधा को न समझ पाई।
पर वो ये देखना भूल गए के स्त्रियों के दामन में गृहस्थी का बोझ,
संतान की बागडोर और समाज के बंधन डालकर,
कितने पुरुष संत हो गए।।
Loved it. Bitter Truth and reality about today.
Jiwan ka saar hai ye kavita ….bahut hi kam shabdon main bahut hi gehri baat ….jis ko samjh paana shayad sabke liye mumkin nahin ….jiwan ki gehrai
Very Nice Lines