ज़िंदगी की दहलीज़ पे,
निशब्द सी खड़ी मैं,
अपनी पहचान को तराशते हुए,
कुछ अपनो के चेहरों पे,
खोई मुस्कुराहट के मोती सजाए…
चंद अरमानो की दास्तान,
और कुछ उम्मीदों का काफिला पिरोए,
हल्की सी मुस्कुराहट तले,
शायद सदियों की उदासी संजोए,
खामोशियों के कारवाँ में,
भूली बीसरी यादों को छुपाए,
जिसे कभी अपना ही ना पाई,
उस पहचान में खुद को भुलाए…
कुछ संवरती, कुछ उखड़ती,
और ज़ीवन की सच्चाई से अंजान,
अपने ही आँसुओं के बहाव में,
ज़िंदगी की दहलीज़ पे,
निशब्द सी खड़ी मैं.
धाराओं के प्रवाह में,
अपरिमित सी होकर बह जाती,
और कभी उँचाइयों से,
कुछ धुंधले सपनो को निहारती,
ज़ीवन के सम्नदर में,
धीरे से गुम हो जाती,
कुछ रोशनी अपनी दामन में संजोए,
कुछ अंधेरे अपनी आँखो में पिरोए,
धरा सी बेबसी लिए,
आकाश से मिल जाने को आतुर,
और फिर उन पनाहों मे खोकर,
खुद को भूल जाने की चाहत लिए,
ज़िंदगी की दहलीज़ पे,
निशब्द सी खड़ी मैं.
कुछ अधूरी सी ज़िंदगी के मायने,
कुछ पूरे होते सपनो की कहानी,
अरमानो से सीँचे हुए,
ख्वाबों की रवानी,
चड़ते हुए सूरज सी उम्मीद लिए,
ढलती शाम की तड़प में सीमटी,
कुछ यादों के सहारे,
जीवन को परिभाषित करती,
अपनी ही पहचान से अंजान,
गैरों की बस्ती में,
अपनो की तलाश में चलती,
कभी थकती, कभी संभलती,
कुछ पा जाने की आस लगाए,
ज़िंदगी की दहलीज़ पे,
निशब्द सी खड़ी मैं.
दुनिया के रंगो में उलझती,
अपने भीतर थोड़ा सुलझती,
बेचैन रातों की करवटों में,
एक नयी सुबह की आस लगाए,
दर्द से सनी सिलवटों को सहलाती,
अपने अक्ष में खुद को ही खो जाने के डर से,
अपने चेहरे को बहते पानी में निहारती,
कुछ अनकहे से लफ़्ज़ों से,
एक नयी कहानी लिखती,
घड़ी की सुईओं की तरह,
हर पल आगे बढ़ते हुए,
निसंकोच से मन से,
अंजान गलियों में भटकते हुए,
खुद को खो देने की चाहत में,
अपनी पहचान को छुपाती,
ज़िंदगी की दहलीज़ पे,
निशब्द सी खड़ी मैं,
Very beautifully described each emotion..
May God bless u Jagriti with success.
Thank you so much Mam..
Speechless…… Just speechless ?
Thank you so much