स्पंदन

स्पंदन

मुक्त होते प्राणो में, जीवन का बंधन,

विरक्त होती सांसो में, प्रेम का स्पंदन,

हमेशा से अपूर्ण ही रह जाने वाली इस यात्रा में,

पूर्ण हो जाने का अविलंबन,

स्वयं को जाने बिना ही,

संसार को अपने विचारों में पिरो लेने का अनुबंधन,

अधूरा सा कोई सपना,

और बिखरे से एहससों से बना कारवाँ,

चाहत की डोर थामे,

आँचल से लिपटा कोई अरमान,

धुंधली सी ही नज़र आए जो,

उस राह की ख्वाइश,

कुछ दूर तन्हा चलने पर,

तुम्हारे कदमों की आहट,

एक अमिट सा विश्वाश,

के तुम मिल ही जाओगे इस सफ़र पर मुझे,

और हर उस तन्हा राह पर,

तुम्हारे होने का एहसास,

बिखरे से सपनों में,

कुछ अधूरी सी उम्मीदों का मंथन,

मुक्त होते प्राणो में जीवन का बंधन,

विरक्त होती सांसो में, प्रेम का स्पंदन,

कुछ पास नहीं फिर भी,

सब कुछ अपना सा लगता है,

पाना कुछ भी नहीं इस ज़िंदगी में,

फिर भी हर दिन का संघर्ष जायज़ ही लगता है,

अपनी पहचान बनाने का ये जुनून,

और फिर तुम्ही में सब कुछ खो देने का अरमां,

थक कर हार जाना,

और फिर तुम्हारे ख्यालों में डूबकर सो जाना,

फलसफा यादों में बीती हर शाम का याद करना,

और फिर तुम्ही में गुम हो जाना,

अंत से शुरू होती,

अनंत की कहानी को वंदन,

अटूट आस में बँधे,

विश्वाश का दर्शन,

मुक्त होते प्राणो में, जीवन का बंधन,

विरक्त होती सांसो में, प्रेम का स्पंदन,

एक मीठी सी हँसी पे,

सब कुर्बान कर देने का हौंसला,

और जो मेरा था ही नहीं कभी,

उसी में हर दिन फिर उलझ कर,

खुद को तराशने का नाटक,

सुलझी हुई पहेलियों को,

फिर से उलझाना,

और उन्हें दिल के थोड़ा और करीब लाना,

बहुत कुछ है जो मेरे ज़हन में रहता है,

पर जब तक तुम नहीं साथ मेरे,

सब कुछ बेवजह सा लगता है,

हृदय में बहती, तुम्हारे इंतज़ार की धड़कन,

और आँखो में छुपे इज़हार की हरकत,

मुक्त होते प्राणो में, जीवन का बंधन,

विरक्त होती सांसो में, प्रेम का स्पंदन!

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