इत्तेफ़ाक़

बेसबर तन्हा राहों पर,
तुम मिलो कभी इत्तेफ़ाक़ से,
गुमनाम सी पहचान लेकर,
आँखो में सवाल लिए,
कुछ अंजान सी कहानियों का किस्सा पिरोकर,
और अपना होने के एहसास लेकर,
बेसबर तन्हा राहों पर,
तुम मिलो कभी इत्तेफ़ाक़ से,

ज़िंदगी के किसी खामोश पड़ाव पर,
उम्मीदों की कोई डोर लेकर,
होंठों पर मुस्कुराहट,
और दिल मे कुछ हलचल लिए,
हक़ीक़त ना सही तो बस ख्वाब बनकर,
बेसबर तन्हा राहों पर,
तुम मिलो कभी इत्तेफ़ाक़ से,

कुछ कदम साथ चलकर,
रंगो की सौगात लेकर,
सितारों की कुछ बात सुनकर,
और सुकून का कोई लम्हा चुनकर,
दिल की बात कह देने को,
बेसबर तन्हा राहों पर,
तुम मिलो कभी इत्तेफ़ाक़ से,

खिलती धूप मे परछाई बनकर,
ढलती शाम में तन्हाई बनकर,
कभी दिल की गहराईओं में उठते अरमान बनकर,
या फिर आईने में एक अक्ष बनकर,
थोड़ी धुंधली सी यादें समेटे,
बेसबर तन्हा राहों पर,
तुम मिलो कभी इत्तेफ़ाक़ से,

ना शिकवा कोई,
ना चाहत कोई,
बस मेरे वजूद का एहसास बनकर,
मेरे जीवन के हर हिस्से में,
प्रेम का आधार बनकर,
बेसबर तन्हा राहों पर,
तुम मिलो कभी इत्तेफ़ाक़ से!!!

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