प्रेम

बादलों के बीच से झांकती,
धूप की बिखरी किरणों सा,
बारिश की बूंदों संग बरसते,
इंद्रधनुष के रंगों सा,
शाम की तन्हाई में झूमते,
रूह को छू जाने वाले गीतों सा,
दिल को जो भा जाए,
उस संगीत के सुर सा,
ज़िन्दगी की कशमकश में शिरकत करते सवालों,
और अनकहे से जवाबों के बीच बंधा,
कुछ अटूट से नाते सा,
फिर भी बिना किसी परिभाषा के,
श्वास के धागों में पिरोया,
बेनाम, बेपरवाह, बेख़ौफ़ सा होता है इश्क…
मुस्कुराहटों के साथ भी जो,
तड़प लेकर आता है असीम,
कहना तो आसान है कि “मैं हूँ तुम्हारा”,
पर निभाना थोड़ा मुश्किल होता है प्रेम…

जब प्रेम में होते हो तुम,
तो भूलना पड़ता है,
अपने अभिमान और स्वाभिमान को कई दफा,
झुक जाना पड़ता है कई बार,
बस उस अक्ष को टूटने से बचाने के लिए,
जिसमें तुमने संजोकर रखे हैं,
एक सुनहरे कल के सपने,
और कई बार उन्हीं सपनों की कटार बनाकर,
उलझ जाना पड़ता है स्वयं से,
प्रेम को ढाल बनाकर,
बड़ा पेचीदा मसला है यह भी,
कभी टूट जाना,
कभी जुड़ जाना,
कभी बिखरकर कांच सा,
फिर से एक कली सा संवर जाना,
रखना पड़ता है हौसला कभी,
दुनिया से भिड़ जाने का,
और कभी उसे बाँहों में समेट कर,
बस अपनी रूह में खो जाने का,
खामोश होकर कई बार,
अपने ही घावों पर मरहम लगाना होता है,
नमक की उस पुड़िया से,
जो तुमने ही छुपाकर रखी है,
घर की उस ऊँची अलमारी में,
इसीलिए मैं कहती हूँ,
कहना तो आसान है कि “मैं हूँ तुम्हारा”,
पर निभाना थोड़ा मुश्किल होता है प्रेम…

तुम्हें खोना पड़ता है कई बार,
अपने अस्तित्व को,
उसके अस्तित्व का परचम लहराने के लिए,
और कई बार,
तुम्हें झुकना पड़ता है,
उसका सहारा बनकर,
उसे थोड़ा और काबिल बनाने के लिए,
कई बार अपने आँसुओं को समेट कर,
और ग़मों को रखकर उस टूटी हुई तिजोरी में,
कुर्बान करना पड़ता है खुद को,
उसकी एक मुस्कुराहट पर,
बिखर जाना पड़ता है कभी,
मुठ्ठी में रखी रेत की तरह,
और कभी बेरंग सा होना पड़ता है,
टूटे ख्वाबों की ताबीर सा,
कभी बेख़ौफ़ होना पड़ता है,
समंदर की लहरों सा,
जो साहस रखती हैं,
किनारों को तोड़कर,
अपनी सीमाओं को बढ़ाने का,
और कभी बांधना पड़ता है,
स्वयं को सीमा में,
ताकि उसकी मर्यादा को,
तुम संभाल पाओ किसी बेशकीमती मोती सा,
इसी कशमकश में उलझे,
तुम स्वयं से ही पूछते हो कई दफा कि,
कहना तो आसान है कि “मैं हूँ तुम्हारा”,
पर निभाना थोड़ा मुश्किल होता है प्रेम…

कभी बिठाना पड़ता है उसकी नादानियों को सिर आँखों पर,
और कभी उसकी परेशानियों को, सीने से लगाना पड़ता है,
वह हौसला रख सके दुनिया से लड़ जाने का,
उसके लिए खुद से लड़ना पड़ता है हर दिन,
प्रेम में बनना होता है सहारा एक दूजे का,
बिना स्वार्थ के कोई बीज बोए,
लेकिन सबसे जरूरी है,
प्रेम के पात्र की पात्रता का निरीक्षण,
जिसके लिए तुम स्वयं को भुला दो,
उसके समर्पण का परीक्षण,
तुम जिस युग में हो वहाँ थोड़ा मुश्किल है,
ऐसा कोई हीरा तलाश करना,
जो बन पाए तुम्हारे मन के भावों का दर्पण,
जो निभा पाए सच्चा प्रेम,
ऐसा प्रेमी भी तो हो…
तुम अपने अस्तित्व को जिसके लिए लगा दो दाँव पर,
उसके अस्तित्व में नज़र आए तुम्हारे होने का असर,
तभी मैं कहती हूँ,
कहना तो आसान है कि “मैं हूँ तुम्हारा”,
पर निभाना थोड़ा मुश्किल होता है प्रेम…

लेकिन जब प्रेमी सच्चा हो तुम्हारा,
तो जीवन का आनंद है प्रेम…
एक अनूठी धरोहर,
और श्वासों का सरगम है प्रेम…
कभी-कभी,
एकतरफा इश्क़ की दास्तान,
और कभी दो धारी तलवार भी है प्रेम,
तुम जिस रूप में महसूस करो,
उसी रूप में अनुपम उपहार है प्रेम,
जीवन की जिस किताब के पन्ने पलटते हो तुम हर दिन,
उसके हर अक्षर की कहानी है प्रेम,
जिसकी कोई परिभाषा ही नहीं,
उस एहसास की रवानी है प्रेम,
और जिसमें आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाए,
बस उस एक पल की आस है प्रेम…
और एक दिन उस से मिलन होगा जरूर,
यह अटूट विश्वास है प्रेम…!!!

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